आज हर जगह विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) मनाया जा रहा है इस बीच Jharkhand में भी जनजातीय महोत्सव का आयोजन किया गया है जिसमें सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) ने शिरकत की। झारखण्ड और आदिवासी एक-दूसरे के पर्याय हैं। झारखण्ड के वन और यहां सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां झारखण्ड की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती रही है।
आदिवासी समाज के लिए अच्छा काम
बाबा तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, फूलो झानो, वीर बुधू, नीलाम्बर, पीताम्बर, तेलंगा खड़िया, जात्रा टाना भगत, दिवा कुशन, गया मुंडा, गंगा नारायण सिंह, पोटो हो, भगीरथ मांझी, ठाकुर विश्वनाथ सहदेव, शेख भिखारी, पाण्डेय गणपत राय, टिकैत उमराँव सिंह सभी भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और लोक नायक हैं जिन्होंने आदिवासी समाज के लोगों के लिए बहतरीन काम किया है।
आदिवासी रहे है संरक्षक
आदिवासी सदैव प्राचीन समय से संस्कृति, परंपराओं एवं प्रकृति के संरक्षक रहे है। आदिवासी समाज की एकजुटता और समाज के विकास के लिए आदिवासी समाज के भीतर विद्यमान नशापान, अंधविश्वास, ईर्ष्या द्वेष, राजनीतिक कुपोषण और प्राचीन वंश- परंपरागत आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में गुणात्मक सुधार लाने की त्वरित जरूरत है। आदिवासी समाज अनेक परम्पराओं को संजोए हुए है। इनकी संस्कृति और परंपराएं अनूठी है।
आदिवासी समाज के लिए लड़े
बहुत से सेनानियों ने आदिवासी समाज के हितो के लिए ब्रिटिश समाज से लड़े। तिलका मांझी एक वो सेनानी हैं जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था वहीं बिरसा मुंडा वो हैं जिनको 1900 में आदिवासी लोंगो को संगठित देखकर ब्रिटिश सरकार ने आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 2 साल का दण्ड दिया था. बिरसा जी ने आदिवासी समाज के लिए अंग्रेजों को धूल चटा दी थी. ये नाम उन सभी के हैं जिन्होंने आदिवासी समझ के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था और अपना योगदान दिया था.