वैश्विक महामारी कोविड-19 (Covid-19) के कारण हमारे कामकाजी जीवन में कई परिवर्तन आये है। कोरोना की महामारी की दस्तक के बाद जहा कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम को अपना लिया है वही अब अब लोग दफ्तर जाने के बजाए घर पर रहते हुए ही काम करने को प्राथमिकता दे रहे हैं। महामारी के कारण पहले तो कर्मचारियों पर दूर रहकर दफ्तर का काम करने की व्यवस्था थोपी गई थी, लेकिन अब दो साल बाद ‘वर्क फ्रॉम होम’ अब ‘नया चलन’ बन गया है और नई आदतें लोगों की जिंदगी में अपनी जगह बना चुकी हैं।

वर्क फ्रॉम होम कल्चर के जहा कुछ फायदे है तो कुछ नुक्सान भी है। घर पर दफ्तर आने के बाद से लोगों को अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए ज्यादा वक्त मिल सका। बच्चे भी घर पर होते और उनके माता-पिता भी। ऐसे में रोज के बिजी दिनों में जब आप अपने बच्चों की हर एक्टिविटी पर ध्यान नहीं दे सकते थे, उसकी तुलना में वर्क फ्राॅम होम में बच्चों पर ज्यादा समय दे सके। वर्क फ्रॉम होम की वजह से लोगो ने अपने घर में अपने काम के लिए अलग से जगह निकली। चाहे आप का घर छोटा हो या फिर बड़ा हर एक व्यक्ति ने अपने काम के लिए अपने घर में एक कोना निर्धारित किया फिर चाहे वो कोई कमरा हो या फिर आप की रसोई ही क्यों न हो। वर्क फ्रॉम होम के चलते कुछ लोगो के आपसी रिश्ते भी सुधरे है। जहा पहले दोनों लोग आपस में काम की वजह से एक दूसरे को समय नहीं दे पा रहे थे, वही अब वे एक दूसरे को समय दे पाए रहे है।  जिससे उनके रिश्तो में सुधर भी आया है। वर्क फ्राॅम होम कल्चर के दौरान उन्हें ये पता चला कि परिवार के किस सदस्य को क्या पसंद है, वह क्या चाहते या सोचते हैं। हालाँकि इस का कुछ नुक्सान भी है। शुरुआत में लोगो को काफी दिकतो का सामना करना पड़ा। जहा कुछ लोगो को लैपटॉप की व्यवस्था करनी पड़ी या फिर अपने घर पर इंटरनेट की व्यवस्था करी। दफ्तर से बाहर काम करने में कई मुश्किलो का सामना करना पड़ा। लेकिन अब लोग इस परिवर्तन से खुश है।

लोग तकनीक से अवगत हुए है।  लोग अब जूम कॉल्स, वीपीएन, एनीडेस्क जैसी तकनीकों से अवगत हुए हैं। इससे हम घरों में बैठकर काम कर पाते हैं। इन्होंने हमें भविष्य में भी घरों में रहकर काम करने की सुविधा प्रदान की है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा की देश में  फ्लेक्सिबल वर्कप्लेस (लचीले कार्यस्थल), वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) करने वाला इकोसिस्टम और लचीले काम के घंटे भविष्य की आवश्यकताएं हैं। आज भारत एक बार फिर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है, इसका बहुत सारा श्रेय श्रमिकों को जाता है। भविष्य में लचीले कार्यस्थलों, घर से काम करने वाले पारिस्थितिकी तंत्र और लचीले काम के घंटों की जरूरत है. हम महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी के अवसरों के रूप में लचीले कार्यस्थलों जैसी प्रणालियों का उपयोग कर सकते हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published.