गोस्वामी तुलसीदासजी हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनके द्वारा लिखई गई श्रीरामचरित मानस में भारतीयों की आत्मा बसती है। भगवान श्रीराम के चरित्र को घर-घर पहुंचाने का कार्य गोस्वामी तुलसीदास ने ही किया है। भगवान श्री राम की भक्ति में लीन गोस्वामी तुलसीदस (Goswami Tulsidas Ji) जी ने श्री रामचरितमानस के साथ 12 महान ग्रंथों की रचना की जैसे की दोहावली, गीतावली, कवितावली, कृष्ण गीतावली, रामज्ञा प्रश्नावली, हनुमान बाहुक, विनय पत्रिका आदि। प्रत्येक वर्ष सावन माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष तुलसीदास जी की 523वीं जयंती मनाई जाएगी।
कौन थे गोस्वामी तुलसीदास?
विश्व को रामचरित मानस के रूप में अनुपम, अद्भुत ग्रंथ देने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म पवित्र चित्रकूट के राजापुर गांव में आत्माराम दुबे और हुलसी के घर पर संवत 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन हुआ था। इन्होंने ही जन्म लेते ही राम बोला था। इसलिए इनका नाम पहले रामबोला रखा गया। जन्म के साथ ही उनके 32 दांत और भारी भरकम डील डौल था. मां के गर्भ में वह 12 माह रहे थे. तुलसीदास जी (Tulsidas) की माता का देहावसान होने के बाद उनके पिता ने उन्हें अमंगल मानकर उनका त्याग कर दिया. यही कारण है कि गोस्वामी तुलसीदास जी का बाल्यकाल कष्टों में बीता। काशी में आचार्य शेषसनातनजी के पास रहकर तुलसीदासजी ने वेदों का अध्ययन किया। अपनी पत्नी द्वारा अपमानित होने के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन प्रभु श्री राम की भक्ति में लगा दिया।
समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ उठाई आवाज
तुलसीदासजी ने अपना पूरा जीवन राम नाम व्यतीत किया और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज भी उठाई। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा कुरीतियों को खत्म करने का प्रयास किया। तुलसीदासजी ने अपनी सभी रचनाएं अवधि और ब्रज भाषा में लिखी हैं। तुलसीदासजी को ही रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना गया है।
हिन्दू धर्म के उद्धारक
तुलसीदास हिन्दू धर्म के उद्धारक थे. उन्होंने हिन्दू धर्म में प्रचलित आडम्बरों तथा पाखंडों का विरोध किया तथा हिन्दू धर्म की उदारता, व्यापकता तथा सहिष्णुता पर बल दिया. उन्होंने हिन्दू धर्म के मूल गुणों दया, परोपकार, अहिंसा आदि पर बल दिया तथा अभिमान, हिंसा, पर पीड़ा आदि दुर्गुणों की निंदा की। उन्होंने निराकार उपासना के स्थान पर राम की सगुण भक्ति पर बल दिया, इस प्रकार उन्होंने ऐसे समय में जबकि मुसलमानों द्वारा मूर्तियों को ध्वंस किया जा रहा था। हिन्दुओं की मूर्तिपूजा पर आस्था बनाए रखी, उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की भक्ति का आदर्श रखा तथा सगुण भक्ति को ही श्रेष्ठ बतलाया. तुलसीदास ने धार्मिक कट्टरता का विरोध किया तथा उदारता एवं सहिष्णुता पर बल दिया।
यदपि तुलसीदास हिन्दू धर्म के रक्षक तथा उद्धारक थे, परन्तु वे साम्प्रदायिकता से कोसों दूर थे. उनकी रचनाओं में कहीं भी इस्लाम धर्म अथवा मुसलमानों के प्रति क्रोध या निंदा का भाव नहीं मिलता.