अक्सर बचपन में हम सबने अपनी दादी नानी को बाजरे या फिर मोटे अनाज की रोटी खाते देखा होगा। हम में से कई लोगो ने मोटे अनाज की चूल्हे की मंद मंद आग पर सिकी हुई रोटी खायी भी होगी। लेकिन बचपन में हम सब को उसके फायदे नहीं पता थे। बस दादी या फिर नानी के घर जाते थे तो जो सब खाते थे थो हम भी खा लेते थे। लेकिन शहरों में मोटे अनाज की जगह गेहू की पतली पतली, जयादा मुलायम और नरम गैस पर सिकी रोटियों ने ले ली और एक समय यह मोटा अनाज हमारी थालियों से ही गायब हो गया। मोटा अनाज मतलब- ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदों और इसी तरह के मोटे अनाज. 60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया. जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है।
60 के दशक के पहले तक भारत में मोटे अनाज की खेती की परंपरा था। लगभग 50 साल पहले तक मध्य और दक्षिण भारत के साथ पहाड़ी इलाकों में मोटे अनाज की खूब पैदावार होती थी। मोटा अनाज सेहत के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद है। मोटा अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाता है और इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती। मोटे अनाज खराब मिट्टी में भी उग जाते हैं. ये अनाज जल्दी खराब भी नहीं होते. 10 से 12 साल बाद भी ये खाने लायक होते हैं। यह अनाज कम और जयादा बारिश को नहीं सह लेते है।
ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है. रागी भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है. इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है. प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। वही बाजरा में प्रोटीन की प्रचूर मात्रा होती है। मोटापा कम करने के साथ-साथ बाजरा मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी बीमारियों के जोखिम को भी कम करता है और पेट और यकृत की बीमारियों को रोकने में भी सहायक होता है।आबादी के लिए पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध करवाने में यही अनाज सक्षम हो सकते हैं. मोटे अनाज पोषण का सबसे बेहतरीन जरिया हैं। मोटे अनाज तेज़ी से चलन में लौट रहे हैं. इन्हें स्मार्ट फ़ूड के तौर पर पहचाना जा रहा है क्योंकि वे धरती के लिए, किसानों के लिए और आपकी सेहत के लिए अच्छे हैं। भारत विश्व में मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और संयुक्त राष्ट्र की इसे बढ़ावा देने की पहल को सफ़ल बनाने की बड़ी ज़िम्मेदारी हम भारत वासियों के कंधों पर है।