झारखण्ड में सदियों से जल, जंगल, ज़मीन की लड़ाई जारी है। ऐसे में कुछ समय पहले तक झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ माओवादी नक्सलियों का क्षेत्र माना जाता था। नक्सलियों के सेफ जोन बूढ़ा पहाड़ को इस बार पुलिस ने माओवादी विहीन करने की ठान ली है। इस बरसात के मौसम में भी झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ सीमा से सटे बूढ़ा पहाड़ पर घमासान मचा है. नक्सलियों के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इस इलाके में पिछले एक सप्ताह से जिला पुलिस, जगुआर, कोबरा और सीआरपीएफ के जवान नक्सलियों की हिमाकत का हिसाब ले रहे हैं। नक्सलियों के खात्मे के संकल्प को लेकर बूढ़ा पहाड़ ऑपरेशन चलाया जा रहा है जिसमे लातेहार एसपी ,पलामू एसपी और गढ़वा एसपी भी अभियान में शामिल है।
बूढ़ा पहाड़ करीब 55 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसकी सीमा झारखंड के लातेहार, गढ़वा और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर से सटी है, जो माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना रहा है. बूढ़ा पहाड़ को माओवादियों से मुक्त कराना बड़ी चुनौती थी। साल २०१८ में बूढ़ा पहाड़ को मुक्त करने की कोसिस करि गयी थी जिसमे कामयाबी नहीं मिली थी। घने जंगल व दुरूह क्षेत्र की वजह से इस पहाड़ की चोटी तक पहुंचना हमेशा से पुलिस के लिये चुनौती भरा रहा है़। लेकिन इस बार सुरक्षा बलों और पुलिस ने मिलकर नक्सलियों के खिलाफ चार सितंबर से आक्टोपस अभियान चलाया जो की सफल रहा।
गढ़वा और लातेहार जिला के बीच बूढ़ा पहाड़ ही एक ऐसा पहाड़ था जो भाकपा माओवादियों का गढ़ माना जाता था, यहाँ माओवादियों के बंकर और ट्रेनिंग कैंप भी हैं. इसे माओवादियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है. यहां कई बार अभियान चलाए गए हैं, बावजूद इसके यहां से माओवादी भागने में सफल रहे हैं। लेकिन इस बार सुरक्षा बालो को बड़ी कामयाबी मिली है। उन्होंने बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त कर दिया है। सुरक्षा बल के इस कामयाबी पर पूरे क्षेत्र में अब शांति का माहौल है।
बूढ़ा पहाड़ का नक्सलियो और माओवादियों से मुक्त होना झारखण्ड के लिए एक बड़ी कामयाबी है। भविष्य में बूढ़ा पहाड़ सैलानियों के लिए भी बहुत जल्द खूबसूरत जगह बन सकता है। भविष्य में अगर इसे टूरिस्ट स्पॉट की तरह विकसित किया जाये तो आसपास के गांव वालो को रोजगार मिलेगा और इस क्षेत्र का विकास भी तेजी से होगा।