हिंदी सीमा तोड़कर, चली विश्व के द्वार।
वैज्ञानिक आधार पर, प्रसिद्धि मिली अपार।।
हिंदी भाषा में सभी भावों को भरने की अद्भुत क्षमता है, यही कारण है कि हिंदी को भारत की जननी भाषा कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में हिंदी को मातृ भाषा का दर्जा दिया गया है। यह महज भाषा नहीं बल्कि भारतीयों को एकता व अखंडता के सूत्र में पिरोती है। हिंदी को मन की भाषा कहा जाता है, जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, संसद से लेकर सड़कों तक और साहित्य से लेकर सिनेमा तक हर जगह संवाद का सबसे बड़ा पुल बनकर सामने आती है। हिंदी हमारे साहित्यकारों की संस्कृति थी।
हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में और 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत वर्ष 1949 से हुई थी। इस दिन भारत की विधान सभा ने हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया था तब से इस भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। साल 1949 में इसी दिन देवनागरी लिपि में हिन्दी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था. हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेलकर, मैथिली शरण गुप्त और सेठ गोविन्द दास के साथ-साथ व्यौहार राजेंद्र सिम्हा के प्रयासों की बदौलत भारत गणराज्य की दो आधिकारिक भाषाओं में से एक हिन्दी को अपनाया गया था।
हिंदी दिवस को उस दिन को याद करने के लिए मनाया जाता है जिस दिन हिंदी हमारे देश की आधिकारिक भाषा बन गई। यह हर साल हिंदी के महत्व पर जोर देने और हर पीढ़ी के बीच इसको बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है जो अंग्रेजी से प्रभावित है। यह युवाओं को अपनी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ तक पहुंचे हैं और हम क्या करते हैं अगर हम अपनी जड़ों के साथ मैदान में डटे रहे और समन्वयित रहें तो हम अपनी पकड़ मजबूत बना लेंगे।
जहाँ अंग्रेजी एक विश्वव्यापी भाषा है और इसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता है वहीँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम पहले भारतीय हैं और हमें हमारी राष्ट्रीय भाषा का सम्मान करना चाहिए। आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने से साबित होता है कि सत्ता में रहने वाले लोग अपनी जड़ों को पहचानते हैं और चाहते हैं कि लोगों द्वारा हिंदी को भी महत्व दिया जाए।