झारखंड में पिछले नौ वर्षों की तुलना में इस बार मानसून के पहले दो महीनों में सबसे कम बारिश दर्ज की गई है। इस वजह से राज्य सूखे जैसी स्थिति में पहुंच रहा है। पिछले 122 वर्षों में जुलाई में दर्ज की गई सबसे कम बारिश के कारण, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और गंगीय पश्चिम बंगाल के चावल बोने वाले किसानों को  काफी दिकतो का सामना करना पड़ा।  इस बार मानसून बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव व अति दाब राज्य के दक्षिणी हिस्से से होकर पश्चिम की ओर निकल जा रहे हैं। जिस कारण से झारखंड के उत्तर व मध्य भाग में बारिश नहीं हो रही है। बारिश की कमी के कारण से राज्य के कई क्षेत्रो में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गयी है। 

राज्य के दक्षिणी हिस्सों में अच्छी बारिश हुई पर उत्तरी इलाके वंचित रहे। बारिश की कमी झेल रहे दक्षिण के सात जिले सामान्य के निकट आ गए, जबकि संताल में सभी छह जिलों में बारिश 62 फीसदी कम हुई है। वहीं पलामू प्रमंडल में 45 फीसदी कम बारिश हुई। यहां सूखे की स्थिति है। जबकि देश भर में मानसून की वर्षा अब तक सामान्य से 8 प्रतिशत अधिक रही है, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत शुष्क मानसून के मौसम का सामना कर रहा है, जिसमें अब तक 16 प्रतिशत तक की कमी है। जुलाई में वर्षा विशेष रूप से सामान्य से लगभग 44 प्रतिशत कम थी, जो पिछले 122 वर्षों में सबसे कम है। पिछली बार इस क्षेत्र में इतनी खराब जुलाई की बारिश 1903 में हुई थी।

लंबे समय तक सूखे ने इस क्षेत्र को सूखे जैसी स्थिति में धकेल दिया है, जिसका धान की बुवाई करने वाले किसानों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। 28 जुलाई तक, बिहार में 474 मिमी के सामान्य के मुकाबले केवल 278 मिमी वर्षा हुई थी, जिसमें 41 प्रतिशत की भारी कमी थी। झारखंड में, कमी 50 प्रतिशत के करीब है, दस जिलों में बड़े पैमाने पर कम बारिश हुई है। इस वजह से इस साल धान की रोपाई पर भी काफी फरक पड़ा है। बारिश की कमी की वजह से किसान धान की रोपाई नहीं कर प् रहे है। 

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